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देश की बदलती पत्रकारिता का स्वागत है बशर्ते वह अपने मूल्यों और आदर्शों की सीमा रेखा कायम रखें – अभय कुमार

 

पत्रकार (न्यूज़ सबकी पसंद) हिन्दी दैनिक अखबार

 

आज पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हो गया है। पत्रकारिता जन-जन तक सूचनात्मक, शिक्षाप्रद एवं मनोरंजनात्मक संदेश पहुँचाने की कला एंव विधा है। समाचार पत्र एक ऐसी उत्तर पुस्तिका के समान है जिसके लाखों परीक्षक एवं अनगिनत समीक्षक होते हैं। अन्य माध्यमों के भी परीक्षक एंव समीक्षक उनके लक्षित जनसमूह ही होते है। तथ्यपरकता, यथार्थवादिता, संतुलन एंव वस्तुनिष्ठता इसके आधारभूत तत्व है। परंतु इनकी कमियाँ आज पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत बड़ी त्रासदी साबित होने लगी है। पत्रकार चाहे प्रशिक्षित हो या गैर प्रशिक्षित, यह सबको पता है कि पत्रकारिता में तथ्यपरकता होनी चाहिए। परंतु तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर, बढ़ा-चढ़ा कर या घटाकर सनसनी बनाने की प्रवृति आज पत्रकारिता में बढ़ने लगी है।
मीडिया को समाज का दर्पण एवं दीपक दोनों माना जाता है। इनमें जो समाचार मीडिया है, चाहे वे समाचारपत्र हो या समाचार चैनल, उन्हें मूलतः समाज का दर्पण माना जाता है। दर्पण का काम है समतल दर्पण का तरह काम करना ताकि वह समाज की हू-ब-हू तस्वीर समाज के सामने पेश कर सकें। परंतु कभी-कभी निहित स्वार्थों के कारण ये समाचार मीडिया समतल दर्पण का जगह उत्तल या अवतल दर्पण का तरह काम करने लग जाते हैं। इससे समाज की उल्टी, अवास्तविक, काल्पनिक एवं विकृत तस्वीर भी सामने आ जाती है।विश्व में आज करीब 50 देशों में प्रेस परिषद है। कुछ देशों में प्रेस परिषद को मीडिया परिषद भी कहा जाता है। परिषद का मकसद था- देश में प्रेस की आजादी को बचाए-बनाए रखने और पत्रकारिता के उच्च मापदंडों की रक्षा में मदद करना। आज सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि वह अपने उद्देश्यों में कितनी सफल हुई है? देश की मीडिया कितनी आजादी से काम कर पा रही है और पत्रकारिता अपने उद्देश्य और सिद्धान्तों में कितनी सफल हो रही है? क्या प्रेस परिषद ने मीडिया जगत में ऐसी प्रतिष्ठा, पहचान और विश्वसनीयता बनाई है कि कोई भी आघात लगते ही मीडिया उसके पास जाए? क्या ऐसे मौकों पर प्रेस परिषद ने उन्हें सम्बल देते हुए उनके साथ न्याय सुनिश्चित किया है? अथवा फिर वह एक और सरकारी विभाग ही साबित हुई? इन सवालों के जवाब में ही राष्ट्रीय प्रेस दिवस की प्रासंगिकता निहित है। उसी से पता चलेगा कि प्रेस दिवस किसके लिए मन रहा है?परंतु इन तमाम सामाजिक बुराइयों के लिए सिर्फ मीडिया को दोषी ठहराना उचित नहीं है।परंतु इस स्थिति में मीडिया समाज को नई दिशा देता है। मिडिया समाज को प्रभावित करता है, लेकिन कभी-कभी येन-केन प्रकारेण मिडिया समाज से प्रभावित होने लगता है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर देश की बदलती पत्रकारिता का स्वागत है बशर्ते वह अपने मूल्यों और आदर्शों की सीमा रेखा कायम रखें।


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