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शेष तीन स्तंभों की मजबूती के लिए चौथे स्तंभ का मजबूत होना जरूरी।

हमने सुना है, कि सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। पर जब सत्य पराजित होने लगता है तो हमें भी निराशा होती है। उस समय के लिए हमारी हिम्मत भी टूटने लगती है बड़ा सवाल आपके सामने रख रहा हूं। कभी सोच कर देखना साहब यह सारे जो रिस्क पत्रकार लेते है ।हमारा निजी फायदा क्या है किसी भी पत्रकार का निजी फायदा क्या है यह सब पत्रकार इसलिए करते हैं ताकि आप तक सही जानकारी पहुंच जाए अपनी जान पर खेलकर जानकारी आप तक पहुंचाते हैं कुछ लोग चाहते हैं हम सही खबर ना दिखाएं खबरों के नाम पर सिर्फ चापलूसी करे कुछ लोग चाहतें है की पत्रकार सिर्फ फरमाइशी खबरें आपके सामने पेश करते रहें।असली खबर वह होती है जो किसी को चुभता है जिसे कोई रोकने का प्रयास करता है इसलिए असली खबर को कोई पसंद नहीं करता है और इसके अलावा जो कुछ भी है सब विज्ञापन है।पी•आर करना आसान है लेकिन सच लिखना और दिखाना मुश्किल है। जिस समाज में लोग सच बोलना बंद कर देते हैं उस समाज का पतन होने लगता है। जब हम सच बोलेंगे तो हमारे खिलाफ एफ आई आर होगा हमारा सर्वलांस शुरू हो जाएगा फोन की रिकॉर्डिंग शुरू हो जाएगी,जान से मारने की धमकियां मिलेगी परिवार घर से बाहर नहीं निकल पाएगा सोशल मीडिया फोटो लिंक होगी और उसके बाद अदालत में मुकदमे चलेंगे जब हम हम आपको आपका विज्ञापन दिखाना शुरू कर दे तो सब कुछ ठीक रहेगा। लेकिन इस तरह की पत्रकारित देश के लोकतंत्र के साथ बेईमानी होगी,और जो पत्रकार इस बईमानी से इंकार कर देंगे उसे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ में जिंदा चुनवा दिया जाएगा, लेकिन चौथा स्तंभ हमारे देश के लोकतंत्र की मजबूती के लिए काफी जरूरी है।लेकिन जिस तरह से इस समय लोकतांत्र के चौथे स्थम्भ पर हामला कर लगातार तोड़ने की कोशिश हो रही है और जो पत्रकार इसके लिए तैयार नहीं है उनके रास्ते में मुश्किलें आ रही हैं,ये स्वथ्य लोकतंत्र के लिये काफी खतरनाक है।आज हमारे देश में वैसे भी सच बोलने वाले पत्रकार लगभग विलुप्त हो चुके लेकिन थोड़े बहुत बचे हैं जो देश के नाम कुछ कहना चाहते हैं जो राष्ट्रवादी पत्रकार है जो हमारे देश मे थोड़े बहुत हीं अब बचे हैं जो कि राष्ट्रवाद की बात करते है उन्हें जिस तरह से सबक सिखाने की धमकियां दी जा रही हैं जिस तरह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को सत्ता के हाथों से कमजोर किया जा रहा है ।जिस तरह रिपब्लिक टीभी के एडिटर इन चीफ अर्णव गोस्वामी के साथ किया गया है जिस तरह से घर में घुसकर परिवार के बीच में से उन्हें उठा लिया गया है एक शातिर अपराधी की तरह वह तरीका ठीक नहीं है,उसके पीछे मंशा है वह ठीक नहीं है, इससे पूरी दुनिया को गलत संदेश गया है ,और इससे बाकी के राज्य सरकारों को नेताओं को और पुलिस को एक अच्छा संदेश नही गया है अगर अन्य राज्य और वहाँ की पुलिस इस फार्मूले को अपना लिया तो इस देश में अनर्थ हो जाएगा यह सब के कानों में बज रहा है देश के लोगों और मीडिया को जागना होगा अलार्म बंद करके सो गए तो फिर बहुत देर हो जाएगी।एसे तो सरकार और मीडिया एक दूसरे के पूरक भी हैं और एक दूसरे के आलोचक भी हैं दोनों को एक दूसरे के काम में आलोचना नहीं करनी चाहिए बल्कि एक दूसरे पर नजर रखनी चाहिए लेकिन इसमें किसी को भी लक्ष्मण रेखा को पार नही करनी चाहिए लेकिन अब तो किसी तरह की कोई रेखा बचा ही नहीं है। इसलिए आज हम लोकतंत्र के साथ हैं और आज हम यह कहना चाहते हैं कि अब जागने का दिन है पिछ्ले दिनो में जो कुछ हुआ है अगर आज नहीं जागे किसी के साथ भी हो सकता है किसी भी राष्ट्रवादी पत्रकार के साथ हो सकता है किसी भी सच बोलने वाले पत्रकार के साथ हो सकता है और आने वाली पीढ़ी के लोग पत्रकारिता में आना ही बंद कर देंगे। जिससे मुझें लगता है थोड़े दिनों में पत्रकारिता सबसे खतरनाक पेशों में आ जाएगी और हो सकता है कि पत्रकारिता पढ़ाने वाले संस्थानों में छात्रों के हाथों में वैधानिक चेतावनी दी जाए की पत्रकारिता आपके सुरक्षा के लिए हानिकारक हो सकती है।एक समय ऐसा आएगा जब मां-बाप अपने बच्चों से कहेंगे कि बेटा कुछ भी बन जाना लेकिन पत्रकार कभी मत बनना और अगर बन भी जाओ तो सच कभी मत बोलना,यह स्थिति बहुत खतरनाक है जिसे लोकतंत्र का पतन हो जाएगा।

 

अभय कुमार, पत्रकार
न्यूज़ सबकी पसन्द


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