कहानी
शीर्षक-
पति के दिल का रास्ता
लेखिका- सुनीता कुमारी
बिहार
आखिरकार वो घड़ी भी आ ही गई जिसकी कल्पनामात्र से जुही कांप उठती थी.वो तलाक के नाम से ही सिहर उठती थी. शादी से पहले जब कभी भी तलाक की बात होती थी तो वह एक ही बात सबसे कहती कि-
” मैं तो अपने पति से इतना प्यार करूगी, इतना ख्याल रखूगी की गलती से भी तलाक का ख्याल भी अपने मन में नही लाएगा.”
और फिर अगले ही पल कहती कि, कैसे लोग होते होगे जो तलाक लेते हैं? यदि उन्हे शादी निभानी न हो तो शादी न करें ?
तलाक देकर सामनेवाले की जिंदगी तो न बरबाद करे ? ये अपराध है.
शादी से पहले जो भी खामी लड़की में ढूंढनी है ढूंढ ले, शादी के बाद लड़की में मीन मेख निकालना कहाँ का न्याय है?कोई भी इंसान सर्वगुणसम्पन्न नही होता ये बात शादी के बाद भी तो याद रखनी चाहिए.
जुही की विदाई के वक्त मां ने जोर देकर कहा था-“पति के दिल का रास्ता पति के पेट से होकर जाता है, समीर के खाने पीने का ध्यान अच्छे से रखना, सास ससुर की सेवा करना, समीर को खुश रखना.
जुही ने मां की बात गाठ बांध ली.ससुराल में पहले दिन से ही जुही अपनी जिम्मेदारीयों को निभाना शुरू कर दिया. आठ बजे सो कर उठने वाली जुही सुबह पांच बजे उठकर घर के कामों में लग जाती.
सारे घर की देखभाल करना, साफ सफाई का ध्यान रखना समीर के माता पिता का ध्यान रखना सब जूही ने संभाल लिया था.
समीर के लिए बेड टी बनाना, समीर के लिए ब्रेकफास्ट बनाना, समीर के लिए लंच तैयार करना, समीर के कपड़े तैयार करना, समीर के लिए लंच पैक करना, समीर की पसंद के अनुसार खाना पकाना . समीर के पसंद के अनुसार कपड़े इस्त्री करना जूही की दिनचर्या बन चुकी थी.
जूही की सारी दिनचर्या समीर के आसपास ही थी उसके बाद जो वक्त मिलता उससे वह अपने सास-ससुर की सेवा करती और फिर अंत में अपने आप पर थोड़ा बहुत ध्यान देती. श्रृगार करना तो जैसे जूही भूल ही गई थी. सारा काम खत्म होने के बाद जूही के पास इतना वक्त नहीं मिलता था कि वह खुद पर ध्यान ध्यान दें.
समीर बीच-बीच जूही को टोका करता था, कि,-
“घर को संवारने और खाना पकाने में तुम्हारा जबाब नही, तुम सबका ध्यान भी रखती हो,सब ठीक है पर खुद पर भी तो ध्यान दिया करो, घर के कामों में इतना व्यस्त रहती हो कि तुम खुद पर ध्यान ही नहीं देती हो, तुम्हारे बाल हमेशा भी बिखरे होते हैं तुम्हारे कपड़े भी अस्त-व्यस्त होते हैं अच्छा लगता है क्या? थोड़ा सज सवंरकर रहा करो यार मुझे भी सुंदर पत्नी ख्वाइश थी. सुंदर तो तुम हो परंतु ,
तुम अपनी सुंदरता को अपने काम के आड़ में छुपा लेती हो मुझसे यह सहन नहीं होता हैं. थोड़ा खुद पर ध्यान दिया करो.
जूही समीर की इन बातों को हल्के में लेती थी, उसे लगता था कि ,समीर मुझसे पूरी तरह खुश हैं क्योंकि घर में किसी तरह का कोई क्लेश नहीं था किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं थी जूही को लगता था कि घर वाले खुश हैं तो फिर
क्या चिन्ता.
जूही का समीर की बातों को हल्के में लेना ही जूही के लिए मुसीबत बन गया.
जूही को पता ही नहीं चला कि, उसके बन ठन कर नहीं रहने के कारण समीर धीरे-धीरे उसे मन से उतारता जा रहा है?
समीर को एक सजी सवंरी आधुनिक वेष भूषा वाली पत्नी चाहिए थी ना कि, घर के कामों में व्यस्त रहने वाले बहनजी जैसी बीवी .
वक्त बितता रहा, देखते-देखते जूही दो बच्चों की मां बन गई और उसकी व्यस्तता दिन ब दिन बढती चली गई. समीर की असंतोष की भावना भी बढ़ता चला गया.
चाहकर भी जूही अपने लिए वक्त नहीं निकाल पाती थी.घर की दिनचर्या में व्यस्त रहना जैसे उसकी आदत बन चुकी थी, और समीर का चिचिरापन बर्दाश्त करने की आदत पड़ चुकी थी .परंतु उसे यह अंदाजा नहीं था की इसी लापरवाही की वजह से समीर उसे एक दिन तलाक दे देगा.
वह दिन उसके सामने था, जिसकी कल्पना जूही ने कभी नहीं की थी.
जूही की मां ने कहा था, पति के दिल का रास्ता पति के पेट से होकर जाता है परंतु, यह नहीं कहा था कि, पति के दिल का रास्ता पति की आंखों से भी होकर जाता है.