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आलेख-
शीर्षक-
स्वतंत्रता दिवस भीगता है ,गणतंत्र दिवस ठिठुरता है क्यों?
लेखिका -सुनीता कुमारी
पूर्णियां बिहार

“ठिठुरता गणतंत्र” हरिशंकर परसाई जी की एक उत्कृष्ट व्यंग प्रधान रचना है, जिसमें उन्होंने भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर तीखा हास्य व्यंग किया है। हरिशंकर परसाई जी हास्य व्यंग्यकार लेखक है और इस क्षेत्र में उन्हें महारत हासिल है ।भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में त्रुटियों को देखकर उन्होंने ठिठुरता गणतंत्र व्यंग की रचना की जो कि एकदम सार्थक एवं रोचक है।एक बार इसे पढ़ने के बाद भूल पाना कठिन है और यह हमेशा के लिए स्मरण में रह जाता है।
भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की खामियों पर यह व्यंग सटीक बैठता है।सभी राजनीतिक दल चाहे वो सत्तारूढ हो या विपक्ष में हो,मात्र विकास के कार्य करने का वादा करती है,ऐसे भी वादें करती है जिसे पूरा करना नामुमकिन है,फिर भी वादा करती है जो मात्र बातों तक ही सीमित रह जाता है।
हरिशंकर परसाई जी राजनीतिक पार्टियों के लोगों की दावों और वादों की पोल खोलते हैं ।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश की राजधानी दिल्ली में हर वर्ष सभी राज्यों से झांकियां निकाली जाती है,परंतु ऊन झाकियों में राज्य की वास्तविक तस्वीर कभी नही दिखाई जाती है।
परसाई जी कहते हैं कि ,राज्यों की झांकी में असलियत होनी चाहिए। गुजरात के दंगे की चर्चा होनी चाहिए, आंध्र प्रदेश की झांकी में हरिजन को जलाते हुए दिखाना चाहिए ,मध्य प्रदेश में राहत के कार्य में घपले की झांकी निकलनी चाहिए, बिहार की झांकी निकले तो चारा खाते हुए अफसर और मंत्री की झांकी निकलनी चाहिए।
हरिशंकर परसाई जी लिखते हैं कि ,हर वर्ष गणतंत्र दिवस पर सूर्य छिपा रहता है ऐसा क्यों?
इस रहस्य की खोज के लिए हरिशंकर परसाई जी अपने एक मित्र जो कांग्रेस के मंत्री भी है उनसे पूछते है कि,गणतंत्र दिवस पर सूर्य क्यों नही निकलता है ??
तो उन्होंने बताया कि-“गणतंत्र दिवस पर सूर्य की किरणों को मनाने की कोशिश की जा रही है ,इतने बड़े सूर्य को बाहर लाना या उसके सामने से बादलों को हटाना आसान नहीं है ,हमें सत्ता में रहने के लिए कम से कम 100 वर्ष तो दीजिए ।”
वही कांग्रेस के दूसरे नेता अस्पष्ट तरीके से कहते है कि, -“हम हर बार सूर्य को बादलों से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं पर हर बार सिंडिकेट वाले अड़ंगा लगा देते हैं ,हम वादा करते हैं कि अगले गणतंत्र दिवस पर सूर्य को निकाल कर दिखाएंगे।”
इस प्रकार अनेक तरह की बाते सामने आती है परंतु सब निराधार,जो आज की राजनीतिक पर सटीक बैठती है।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर हाथ ओवरकोट से बाहर निकालना बहुत कठिन होता है ,लेकिन रेडियो में समाचार प्रसारित होता है कि,” प्रधानमंत्री और विदेशी मेहमान का स्वागत जोरदार तालियों से हो रहा है,परंतु वास्तविकता यह है कि, लोग ठंड की वजह ताली ही नही बजा बजाते है।
भारत में केवल गणतंत्र दिवस की ठिठुरन का शिकार नहीं बल्कि, समाजवाद ,धर्मनिरपेक्ष, सहकारिता इत्यादि भी टूट कर रह गई है ,यहां छीना झपटी और अफसरशाही का राज है,नेताओ का राज है।गरीबी की ठिठुरन से आम जनता हाथ छुपाये हुई, और अकर्मण्यता ,गैरजिम्मेदारी,भष्टाचार की राजनीतिक में विकास का सुर्य छिपा है।
परसाई जी ने बहुत सारी ज़मीनी हकीकत की बातें इस व्यंग में कही है,एक चिंता जताई है कि,विकास रूपी सूर्य भारत की भूमी पर कैसे चमकेगा यह बहुत ही चिंता का विषय है ,वादें दावें दोनों की हकीकत की धरातल पर आते ही मौत हो जाती है तो निश्चय ही स्वतंत्रता दिवस बरसेगा,और गणतंत्र दिवस ठिठुरेगा।


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