*खजनी तहसील में माल बाबू का पद खाली, किसानों की फाइलें ठप — सिस्टम “सुविधा शुल्क” पर टिका!*
*गोरखपुर के खजनी तहसील के सच*
सीएम योगी के जनपद में खजनी तहसील शासन-प्रशासन की लापरवाही एक बार फिर किसानों की मुश्किलें बढ़ा रही है। तहसील का सबसे अहम पद — माल बाबू — लंबे समय से खाली पड़ा है और इसका खामियाजा भुगत रहे हैं आम लोग, खासकर किसान। तहसील में फाइलों की रफ्तार थम गई है और कामकाज हल्का लेखपाल के भरोसे है, जो पहले से ही अपने कार्यभार में दबा हुआ है।
*कथित माल बाबु ” श्याम कन्हैया से मिलना, पैसे के बिना फाइल का न चलना” — यही बना सिस्टम!*
स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि बिना “सुविधा शुल्क” के एक भी फाइल आगे नहीं बढ़ रही। खजनी और आसपास के गांवों से आने वाले किसानों को बार-बार तहसील के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। एक पीड़ित किसान ने कहा, “लेखपाल साहब हल्के में नहीं आते, और तहसील में फाइल तब तक नहीं हिलती जब तक जेब से कुछ न निकले।”
*दोहरे काम का बोझ, लेकिन जवाबदेही का अभाव*
माल बाबू की जिम्मेदारियां जबरन हल्का लेखपाल निभा रहा है, जिससे दोनों ओर से काम प्रभावित हो रहा है। लेकिन तहसील में लेखपाल का मिलना ही मुश्किल है। नतीजा – किसानों को अपनी भूमि से जुड़े छोटे-छोटे कामों के लिए हफ्तों चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
*तहसील में “सुविधा शुल्क” का अघोषित तंत्र, प्रशासन मौन*
सूत्रों की मानें तो तहसील कार्यालय में माल बाबू के न होने से जो खालीपन आया, उसे कुछ लोग अपने निजी लाभ के लिए भुना रहे हैं। फाइलें आगे तभी बढ़ती हैं जब जेब से पैसा निकले। हैरानी की बात ये है कि इस पूरे मामले में जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं।
*प्रशासन की वैकल्पिक व्यवस्था — “नाकामी” साबित*
खजनी के लेखाधिकारी ने सफाई दी है कि “काम न रुके, इसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था की गई है।” लेकिन किसानों की हकीकत कुछ और बयां कर रही है। साफ है कि यह व्यवस्था पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है।
*किसानों की हुंकार — “अब नहीं सहेंगे बेबसी!”*
ग्रामीणों और किसानों की मांग है कि माल बाबू के रिक्त पद को अविलंब भरा जाए। साथ ही लेखपाल को उसके मूल कार्यों पर केंद्रित किया जाए ताकि राजस्व से जुड़े काम तेजी से और पारदर्शिता के साथ पूरे हों।
*सवाल वही — जिम्मेदार कब जागेंगे?*
क्या जिला प्रशासन और राजस्व विभाग इस गंभीर अव्यवस्था की सुध लेंगे? या फिर किसान यूं ही “सुविधा शुल्क” की भेंट चढ़ते रहेंगे? अब वक्त है जवाबदेही तय करने का, ताकि खजनी तहसील में व्यवस्था फिर से पटरी पर लौटे और लोगों को इंसाफ मिल सके।
*खजनी बोलेगा, अगर प्रशासन नहीं जागा!*
यह केवल एक तहसील की बात नहीं, यह ग्रामीण भारत की उस हकीकत की झलक है, जहां कुर्सियां खाली हैं लेकिन जेबें भरी जा रही हैं। अब देखना यह है कि इस गूंगी व्यवस्था को आवाज कौन देगा — जनता या शासन?